Title | : | नेताजी कहिन |
Author | : | |
Rating | : | |
ISBN | : | 8126709847 |
ISBN-10 | : | 9788126709847 |
Language | : | Hindi |
Format Type | : | Paperback |
Number of Pages | : | 158 |
Publication | : | First published January 1, 2003 |
नेताजी कहिन Reviews
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'नेताजी कहिन' आज से 26 साल पहले लिखा गया था परंतु आज के पाठकों और आज के माहौल के लिए भी इसका कटाक्ष उतना ही सामयिक है और उतना ही तीखा भी। बस इसमें जहां जहां हज़ार रुपये का उल्लेख है उसे लाख से और जहां लाख है उसे करोड़ से बदल दीजिये और ये आज भी उतना ही प्रासंगिक हो जाएगा।
हास्यात्मक शैली में लेखक ने, हमारे देश के राजनीतिक जीवनशैली में सर्वव्याप्त भ्रष्टाचार और पूरे जन समाज के ही नैतिक पतन का जैसा चित्रण किया है वह झकझोर देने वाला है और डरावना भी। सबसे हृदयविदारक बात ये है कि उपरोक्त का वर्णन आपको किनहिं मामलों में आज के भ्रष्टाचार के किस्सों से उन्नीस नहीं लगेगा। केवल एकाध शून्यों का अंतर मिलेगा लेन-देन के हिसाबों में,बस।
इसी कारण से इसकी कथा से 'golden-ageism' के उस सिद्धान्त को भी बल मिलता है, जिसके अनुसार हमें सदैव ही गुज़रा हुआ ज़माना, सुहाना और हर दृष्टिकोण से आज से बेहतर और सभ्य नज़र आता है और सारी कमियाँ और त्रुटियाँ वर्तमान में ही नज़र आती हैं। क्योंकि यदि इसके कथ्य के हिसाब से चलें तो कोई खास अंतर नहीं मिलेगा आज के और आज से 26 साल पहले के समाज में।
इसलिए यदि इसे पढ़कर आप निराशावाद के पुजारी हो जाएँ तो कोई बड़ी बात नहीं। अतएव इसे पढ़ें पर इसके 'after-effects' के लिए भी तयार रहें। -
नेताजी कहीं एक क्लासिक व्यंग्य है इतना सार गर्भित और साथ में कॉमिक भी . हर कहानी गुदगुदाती है पर बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर करती है. हो सकता है आजकल के पाठकों को ये व्यंग्य उतने प्रासंगिक न लगें. पर जिन्होंने पुराना ज़माना देखा है उनके लिए ये किताब आज भी सामयिक है
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Very good political satire
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बेहतरीन व्यंग संग्रह। नेताजी के उवाच हँसाते हैं लेकिन कहीं इसका भी बोध देते हैं शायद हर नेता उन्ही की तरह सोचता है।
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It's an excellent political satire.My only problem with the book was that it's been written in a dialect which makes comprehension a bit difficult and slow.